Ninder ghugianvi biography of christopher


चपरासी से बने प्रोफेसर, लिख चुके 70 किताबें, IAS-PCS को भी देते हैं लेक्चर, बने पंजाबी साहित्य का सितारा

Peon Turned Professor: रिटायर्ड आईएएस अफसर वरुण रूजम ने पंजाबी साहित्य का सितारा बन चुके निंदर घुगियाणवी की कहानी साझा की है. उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को एक लेख के जरिए निंदर घुगियाणवी के जीवन संघर्ष और उनकी सफलता के बारे में बताया है कि कैसे एक चपरासी ने प्रोफेसर बनने का सफर तय किया.

आईएएस अफसर वरुण रूजम ने लेख में की शुरुआत साल 2005 के किस्से से ही की, जब वह फरीदकोट में ट्रेनिंग ले रहे थे और एक छोटे से कस्बे सादिक में नायब तहसीलदार के रूप में अपनी सेवा दे रहे थे.

एक दिन, जब वह अदालत के अंदर जा रहे थे तो उन्होंने देखा कि वहां शूटिंग के लिए कैमरे लगे हुए थे. जैसे ही उनकी गाड़ी गेट से गुजरी, तो उन्होंने देखा कि खाकी वर्दी में एक दुबला-पतला नौजवान कैमरे के सामने खड़ा होकर चिल्ला रहा था – "कट, कट, कट!"  

वरुण रूजम बताते हैं "मेरे मन में उत्सुकता हुई, तो मैंने अपने रीडर से पूछा कि ये क्या चल रहा है.

उन्होंने बताया कि पास के एक गांव के लेखक अपनी जिंदगी पर आधारित एक शॉर्ट फिल्म की शूटिंग कर रहे हैं. वो लेखक पहले जजों के साथ ऑर्डरली के रूप में काम करते थे, लेकिन बाद में उन्होंने वो नौकरी छोड़ दी और अपनी साहित्यिक रचनाओं के लिए मशहूर हो गए. उस दिन जो फिल्म बन रही थी, वो उनकी आत्मकथा पर आधारित थी."  

उन्होंने आगे कहा "मेरी दिलचस्पी बढ़ी, तो मैंने अपने रीडर से कहा कि उस नौजवान को मेरे पास लेकर आएं.

जब वो मेरे पास आए, तो उन्होंने 'सत श्री अकाल' कहकर अभिवादन किया. मैंने उन्हें बैठने का इशारा किया, लेकिन वो झिझकते हुए हाथ जोड़कर बोले, 'नहीं, साहब! मैं इस कुर्सी पर बैठने के लायक नहीं हूं.' हालांकि, मेरे बार-बार कहने पर वो आखिरकार बैठ गए." 

जब मैंने उनसे उनकी कहानी पूछी, तो उन्होंने बताना शुरू किया –  

इसके बाद वरुण रूजम ने उनसे उनकी कहानी पूछी तो उस शख्स ने कहा "साहब, हालातों की वजह से मुझे दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी.

लेकिन मुझे गाने का शौक था. करीब 12-13 साल की उम्र में मैं मशहूर पंजाबी लोक गायक लाल चंद यमला जट्ट का शागिर्द बन गया. उनके मार्गदर्शन में मैंने संगीत सीखा और लिखना शुरू किया.

David bailey photography biography

मेरी पहली बड़ी रचना मेरे उस्ताद की जीवनी थी, जिसे पंजाब यूनिवर्सिटी, पटियाला ने प्रकाशित किया."  

उन्होंने आगे बताया - "साहित्य और संस्कृति में मेरी रुचि की वजह से मुझे 2001 में कनाडा से निमंत्रण मिला. वहां मुझे तत्कालीन प्रधानमंत्री जीन क्रेटियन ने संसद में सम्मानित किया. जब प्रधानमंत्री को पता चला कि 23 साल की उम्र में मैंने 24 किताबें लिखी हैं, तो उन्होंने मजाक में कहा, 'लगता है जब तुम पैदा हुए थे, तब भी हाथ में किताब थी.' हम दोनों हंस पड़े."  

उन्होंने कहा "इसके बाद मैंने ब्रिटेन की संसद में भी भाषण दिया और मेरा लेखन अमेरिका तक पहुंचा."  

वरुण रूजम बताते हैं कि साल 2005 से लेकर 2024 तक, उन्होंने उसकी जिंदगी को कई रंगों में देखा है.

उन्होंने हर सुख-दुख उनके साथ साझा किया और अपनी हर नई किताब की एक कॉपी उन्हें जरूर दी. उनकी रचनाओं में आम पंजाबी लोगों के संघर्षों की झलक मिलती है.

साहित्य और कला में उनकी तरक्की काबिल-ए-तारीफ है. साल 2012 से वो चंडीगढ़ स्थित महात्मा गांधी स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में नए आईएएस और पीसीएस अफसरों को पंजाबी आर्ट और भाषा पर लेक्चर दे रहे हैं.

उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा है, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी. आज तक उन्होंने 70 से ज्यादा किताबें लिखी हैं. इनमें से एक किताब उनके जजों के साथ ऑर्डरली के अनुभवों पर आधारित है, जो अब कई विश्वविद्यालयों के Sheet और MBA पाठ्यक्रम का हिस्सा बन चुकी है. उनके लेखन पर अब तक 12 छात्रों ने MPhil और PhD के लिए रिसर्च की है.

अब मैं आपको इस अद्भुत लेखक का नाम बताता हूं – निंदर घुगियाणवी. वो फरीदकोट के पास अपने पुश्तैनी गांव में रहते हैं. हाल ही में मैंने अखबार में पढ़ा कि उन्हें केंद्रीय विश्वविद्यालय, बठिंडा में प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस (POP) नियुक्त किया गया है.

Downstairs by theresa rebeck plays

ये खबर सुनकर मेरा मन फिर उसी दुबले-पतले वर्दी वाले नौजवान की ओर चला गया.

जब उन्हें पंजाब विश्वविद्यालय में भारत के उपराष्ट्रपति द्वारा साहित्य में योगदान के लिए "साहित्य रत्न" पुरस्कार दिया गया, तो उन्होंने नम्रता से कहा –  
"साहब, विनम्रता का फल मीठा होता है."

मेरी नजर में निंदर घुगियाणवी पंजाबी साहित्य का एक विशाल वटवृक्ष हैं, जिनकी हर शाखा पर साहित्य का खजाना है.